Rethink Aadhaar

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SC extending Aadhaar linking deadline indefinitely for only banking, mobile leaves most vulnerable with no protection for privacy or basic rights to welfare

Statement by Rethink Aadhaar on the Supreme Court's Interim Order

The Interim Order issued by the Supreme Court today has come as a grave disappointment, given the large scale exclusion and cases of starvation deaths reported due to Aadhaar, the biometrics-linked resident ID, from the poorest districts of the country. 

The Court on Tuesday extended the deadline for linking Aadhaar only for banking and mobile services, for which the Aadhaar linking deadline so far was coming up on March 31, 2018.

It is expected that with respect to PAN linking, the previous orders from June 2017 will apply.

Worryingly, in line with a request by the Attorney General in court today, the deadline was not relaxed for notifications under Section 7 of the Aadhaar Act, 2016 that practically make it a requirement to link Aadhaar for people to continue to have access to 139 crucial welfare schemes, several of which are citizens’ legal rights. 

These include a essential services such as mid-day meals for children, food subsidies under the National Food Security Act, the Right to Education for children upto 14 years, disability, widows’ and old age pensions, scholarships for Dalit and Adivasi students, teachers’ and health workers’ stipends, maternity benefits under Janani Suraksha Yojana, and a wide range of welfare schemes.

Though today’s orders say that previous orders remain in force that provide exemptions for food security benefits when biometric authentication fails, the evidence is that these orders from October and December have been completely ignored by government departments, with UIDAI, the agency managing the database, continuing to push for making Aadhaar mandatory in every aspect of life, and forcing seeding, linking Aadhaar numbers across databases, violating citizens’ right to privacy and security. These circulars on which today’s court order refers to have remained ineffective and failed to alleviate our distress on the ground when Aadhaar authentication regularly fails.

Today’s order says the deadline for mobile and bank linking have been extended till the final judgement of the court. As such no time can be prescribed, but one indicative date may be October 2, when the current Chief Justice of India’s tenure ends. 

The petitioners’ advocates will now push for these Section 7 notifications to be covered under the indefinite extension as well, and not limit relief only for bank and mobile customers.

Despite Aadhaar being presented as a voluntary scheme since 2009, two successive prime ministers have forced citizens to submit their biometrics to access essential services. They have done this by making the most basic services for vulnerable citizens available only to those who pass the biometric authentication test, armtwisting citizens to enroll in the database operated without any legal framework while the data was collected.

Today’s order has failed to provide the most vulnerable citizens of the country protection or relief from disruption of the legal right and access to even basic social services.


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Hindi version

आधार मामले में सर्वोच्च न्यायालय की संविधानिक पीठ के अंतरिम आदेश पर Rethink Aadhaar का वक्तव्य

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केवल बैंकिंग व मोबाइल सेवाओं को आधार से जोड़ने की समय सीमा को बढ़ाने के निर्णय से अधिकांश नागरिक अपने निजता व सामाजिक सुरक्षा के अधिकारों से वंचित रहेंगे

पूरे देश में, खास कर गरीब क्षेत्रों में, व्यापक पैमाने पर लोग आधार के कारण अपने सामाजिक सुरक्षा के अधिकारों से वंचित हो रहे हैं. इस वंचना के कारण कई लोगों की भुखमरी से मौत भी हुई है. ऐसी परिस्थिति में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी किया गया अंतरिम आदेश लोगों के लिए अत्यंत निराशाजनक है.

अभी तक बैंकिंग व मोबाइल सेवाओं को आधार से जोड़ने की समय सीमा 31 मार्च 2018 थी. न्यायालय ने मंगलवार को इस सीमा को बढ़ा दिया. लेकिन यह आशंका है कि इस निर्णय के बाद भी पैन कार्ड को आधार से जोड़ने की पुरानी समय सीमा ही लागू रहेगी.

यह चिंताजनक है कि अटॉर्नी जनरल के अनुरोध पर न्यायालय ने आधार कानून के खंड 7 अंतर्गत अधिसूचनाओं की समय सीमा को नहीं बढाया. इसका सीधा मतलब है कि लोगों को 139 महत्त्वपूर्ण जन कल्याणकारी योजनाओं की सुविधाएं (जिसमें से कई नागरिकों के मौलिक अधिकार हैं) को प्राप्त करने के लिए अपने आधार को लिंक करवाना पड़ेगा.

इनमें बच्चों के लिए मध्यान भोजन, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून अंतर्गत खाद्य सब्सिडी, 14 साल तक के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, दलित व आदिवासी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति,शिक्षकों व स्वास्थय कर्मियों का मानदेय, जननी सुरक्षा योजना अंतर्गत मत्रित्व भत्ता जैसी ज़रूरी जन कल्याणकारी योजनाएं शामिल हैं.

13 मार्च 2018 के आदेश में यह कहा गया है कि पिछले सभी आदेश लागू रहेंगे जिनके अनुसार बायोमेट्रिक सत्यापन न होने के कारण लोगों को उनके खाद्य सुरक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. लेकिन ज़मीनी हकीकत यही है कि अक्टूबर-दिसम्बर 2017 में निर्गत ऐसे अनेकों निर्देशों को सरकारी विभागों व UIDAI ने दर-किनारे कर के जीने के अधिकार के हर पहलू में आधार को अनिवार्य बना दिया है. इससे नागरिकों की निजता व सुरक्षा के अधिकार का व्यापक हनन हो रहा है. न्यायालय के 13 मार्च के निर्णय में इन सरकारी निर्देशों का हवाला दिया गया है, लेकिन ये आज तक निष्प्रभावी रहे हैं और आधार के कारण लोगों के अधिकारों के हनन को रोकने में असमर्थ रहे हैं.

13 मार्च के आदेश में मोबाइल व बैंकिंग सेवाओं को आधार से जोड़ने की समय सीमा को आधार मामले की अंतिम सुनवाई के निर्णय तक बढ़ा दिया गया है. हालाँकि कोई अंतिम तिथि नहीं बताई गयी है, लेकिन अनुमानित तिथि 2 अक्टूबर 2018 हो सकती है जब वर्तमान मुख्य न्यायाधीश सेवा-निवृत्त होंगे.

याचिकाकर्ता के वकीलों द्वारा अब यह कोशिश की जाएगी कि समय सीमा को आगे बढ़ाने के अंतरिम आदेश अंतर्गत आधार कानून के खंड 7 सम्बंधित विभिन्न अधिसूचनाओं को भी जोड़ा जाए और इसे केवल बैंकिंग व मोबाइल सेवाओं तक ही सिमित न रखा जाए.

हालाँकि 2009 से आधार को एक स्वैच्छिक योजना के रूप में पेश किया जाता रहा है, लेकिन देश के दोनों प्रधान मंत्रियों (वर्तमान व पूर्व) ने नागरिकों को आवश्यक सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए उनकी बायोमेट्रिक जानकारी देने के लिए मजबूर किया है. 

इसके लिए उन्होंने कई आवश्यक सेवाएं प्राप्त करने के लिए बायोमेट्रिक सत्यापन को अनिवार्य कर दिया. इससे सरकार ने बिना किसी क़ानूनी ढांचे के नागरिकों को आधार डेटाबेस से जुड़ने के लिए विवश कर दिया.

हाश्ये पर रहने वाले नागरिक जिनके मौलिक अधिकारों का लगातार हनन हो रहा है एवं जो जन कल्याकारी सुविधाओं से वंचित हो रहे हैं, उन्हें SC आदेश से किसी प्रकार की राहत नहीं मिली.

आधार मामले में सर्वोच्च न्यायालय की संविधानिक पीठ के अंतरिम आदेश पर Rethink Aadhaar का वक्तव्य

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केवल बैंकिंग व मोबाइल सेवाओं को आधार से जोड़ने की समय सीमा को बढ़ाने के निर्णय से अधिकांश नागरिक अपने निजता व सामाजिक सुरक्षा के अधिकारों से वंचित रहेंगे

पूरे देश में, खास कर गरीब क्षेत्रों में, व्यापक पैमाने पर लोग आधार के कारण अपने सामाजिक सुरक्षा के अधिकारों से वंचित हो रहे हैं. इस वंचना के कारण कई लोगों की भुखमरी से मौत भी हुई है. ऐसी परिस्थिति में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी किया गया अंतरिम आदेश लोगों के लिए अत्यंत निराशाजनक है.

अभी तक बैंकिंग व मोबाइल सेवाओं को आधार से जोड़ने की समय सीमा 31 मार्च 2018 थी. न्यायालय ने मंगलवार को इस सीमा को बढ़ा दिया. लेकिन यह आशंका है कि इस निर्णय के बाद भी पैन कार्ड को आधार से जोड़ने की पुरानी समय सीमा ही लागू रहेगी.

यह चिंताजनक है कि अटॉर्नी जनरल के अनुरोध पर न्यायालय ने आधार कानून के खंड 7 अंतर्गत अधिसूचनाओं की समय सीमा को नहीं बढाया. इसका सीधा मतलब है कि लोगों को 139 महत्त्वपूर्ण जन कल्याणकारी योजनाओं की सुविधाएं (जिसमें से कई नागरिकों के मौलिक अधिकार हैं) को प्राप्त करने के लिए अपने आधार को लिंक करवाना पड़ेगा.

इनमें बच्चों के लिए मध्यान भोजन, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून अंतर्गत खाद्य सब्सिडी, 14 साल तक के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, दलित व आदिवासी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति,शिक्षकों व स्वास्थय कर्मियों का मानदेय, जननी सुरक्षा योजना अंतर्गत मत्रित्व भत्ता जैसी ज़रूरी जन कल्याणकारी योजनाएं शामिल हैं.

13 मार्च 2018 के आदेश में यह कहा गया है कि पिछले सभी आदेश लागू रहेंगे जिनके अनुसार बायोमेट्रिक सत्यापन न होने के कारण लोगों को उनके खाद्य सुरक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. लेकिन ज़मीनी हकीकत यही है कि अक्टूबर-दिसम्बर 2017 में निर्गत ऐसे अनेकों निर्देशों को सरकारी विभागों व UIDAI ने दर-किनारे कर के जीने के अधिकार के हर पहलू में आधार को अनिवार्य बना दिया है. इससे नागरिकों की निजता व सुरक्षा के अधिकार का व्यापक हनन हो रहा है. न्यायालय के 13 मार्च के निर्णय में इन सरकारी निर्देशों का हवाला दिया गया है, लेकिन ये आज तक निष्प्रभावी रहे हैं और आधार के कारण लोगों के अधिकारों के हनन को रोकने में असमर्थ रहे हैं.

13 मार्च के आदेश में मोबाइल व बैंकिंग सेवाओं को आधार से जोड़ने की समय सीमा को आधार मामले की अंतिम सुनवाई के निर्णय तक बढ़ा दिया गया है. हालाँकि कोई अंतिम तिथि नहीं बताई गयी है, लेकिन अनुमानित तिथि 2 अक्टूबर 2018 हो सकती है जब वर्तमान मुख्य न्यायाधीश सेवा-निवृत्त होंगे.

याचिकाकर्ता के वकीलों द्वारा अब यह कोशिश की जाएगी कि समय सीमा को आगे बढ़ाने के अंतरिम आदेश अंतर्गत आधार कानून के खंड 7 सम्बंधित विभिन्न अधिसूचनाओं को भी जोड़ा जाए और इसे केवल बैंकिंग व मोबाइल सेवाओं तक ही सिमित न रखा जाए.

हालाँकि 2009 से आधार को एक स्वैच्छिक योजना के रूप में पेश किया जाता रहा है, लेकिन देश के दोनों प्रधान मंत्रियों (वर्तमान व पूर्व) ने नागरिकों को आवश्यक सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए उनकी बायोमेट्रिक जानकारी देने के लिए मजबूर किया है. 

इसके लिए उन्होंने कई आवश्यक सेवाएं प्राप्त करने के लिए बायोमेट्रिक सत्यापन को अनिवार्य कर दिया. इससे सरकार ने बिना किसी क़ानूनी ढांचे के नागरिकों को आधार डेटाबेस से जुड़ने के लिए विवश कर दिया.

हाश्ये पर रहने वाले नागरिक जिनके मौलिक अधिकारों का लगातार हनन हो रहा है एवं जो जन कल्याकारी सुविधाओं से वंचित हो रहे हैं, उन्हें SC आदेश से किसी प्रकार की राहत नहीं मिली.


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