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आधार फैसले के पांच साल

26.09.2023 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा आधार निर्णय (के एस पुट्टास्वामी और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (2019) 1 एससीसी 1) को सुनाए हुए आधा दशक हो गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि एक सुविधाजनक भूलने की बीमारी हमारी सरकार को प्रभावित करती है क्योंकि यह आधार अधिनियम में नए नियम और ऐसे संशोधन बनाती है जो उस निर्णय द्वारा आधार के उपयोग पर लगाई गई सीमाओं को नज़र अंदाज करते हैं। निर्णय का लिंक यहां है

संक्षेप में: आधार के उपयोग पर पाँच महत्वपूर्ण सीमाएँ जिन्हें बहुमत के फैसले ने मान्यता दी:

  1. आधार को केवल कल्याणकारी योजनाओं के लिए अनिवार्य बनाया जा सकता है (पृष्ठ 389, पैरा 320 - 322 देखें)। यह विशेष रूप से अभिनिर्धारित किया गया था कि आधार को पेंशन जैसे अर्जित लाभों के लिए अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता है। बहुमत के फैसले में यह भी कहा गया है, "साथ ही, हम आशा करते हैं कि उत्तरदाता 'सब्सिडी, सेवाओं और लाभों' के दायरे का अनुचित विस्तार नहीं करेंगे, जिससे आधार का दायरा बढ़ेगा, जहां इसकी अन्यथा अनुमति नहीं है।" (पृ. 391)

  2. निजी कंपनियां आधार का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं. आधार अधिनियम की धारा 57 जो निजी कंपनियों द्वारा आधार प्रमाणीकरण के उपयोग की अनुमति देती है, असंवैधानिक है (पैरा 219 (ई), 412, 447(1)(डी))।

  3. आधार को बच्चों के स्कूल में प्रवेश या सर्व शिक्षा अभियान के तहत लाभ के लिए अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता है। आधार की कमी के कारण बच्चों को लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है (पृष्ठ 393, पैरा 325; पृष्ठ 401, पैरा 332 देखें)।

  4. आधार (प्रमाणीकरण) विनियम, 2016 के विनियम 26 के अन्तर्गत अधिप्रमाणन संव्यवहार डेटा का संचयन अस्वीकार्य माना गया था। (पैरा 219 (बी))

  5. आधार (प्रमाणीकरण) संव्यवहार डेटा का प्रतिधारण  छह महीने की अवधि से अधिक नहीं रखा जाना चाहिए (पैरा 219 (ए))

फैसले द्वारा स्थापित सीमाओं की घोर उपेक्षा करते हुए, सरकार मौलिक अधिकारों की कीमत पर यूआईडी को बढ़ावा देने के लिए आधार के उपयोग का विस्तार जारी रखे हुए है।

मूडीज क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने आधार की आलोचना की

इस बीच, एक अनुस्मारक - बायोमेट्रिक्स अविश्वसनीय हैं। यह व्यापक रूप से बताया गया है कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसी, मूडीज़ ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें आधार के साथ चिंताओं को उजागर किया गया है, जिसमें कहा गया है कि "इस प्रणाली के परिणामस्वरूप अक्सर सेवा से इनकार हो जाता है, और मैनुअल मजदूरों के लियें बायोमेट्रिक प्रौद्योगिकियों की विश्वसनीयता, विशेष रूप से गर्म, आर्द्र जलवायु में कम हो जाती है। सरकार ने रिपोर्ट का खंडन किया है और किये गए दावों को “निराधार” बताया है।

दुनिया में सबसे भरोसेमंद आईडी

मूडीज को जवाब देते हुए मोदी सरकार ने अविश्वसनीय दावा किया है कि आधार दुनिया में सबसे भरोसेमंद डिजिटल आईडी है। वहीँ अपराधी, किसी भी खेल से हमेशा दो कदम आगे रहते हैं, इस सबसे भरोसेमंद आईडी के साथ धोखाधड़ी करने के नए तरीके खोजने में बेहद नवीन और आविष्कारशील रहे हैं। हमारी एक व्यक्तिगत पसंदीदा कहानी यूपी गैंग की थी जो आधार कार्ड बनाने के लिए पैर की उंगलियों के निशान (टो प्रिंट) का इस्तेमाल करता था, जिसका इस्तेमाल धोखाधड़ी से बैंक ऋण लेने वाले कई लोगों द्वारा किया जाता था।

डिकोड ने इस महीने रिपोर्ट दी थी - ''बिहार पुलिस आधार सक्षम भुगतान प्रणाली के माध्यम से धोखाधड़ी से थक गई है।” यह रिपोर्ट आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS) की व्याख्या करती है। आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS) के तहत लोगों को अपने खाते से पैसा निकालने के लिए अपने बॉयोमीट्रिक्स (उंगलियों के निशान) का उपयोग करना पड़ता है। लोगों को बैंक जाने या एटीएम कार्ड रखने की आवश्यकता नहीं है, वे बैंक द्वारा नियुक्त  बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट (या CSP) के पास जा सकते हैं। वे बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट को अपना आधार नंबर देते हैं, पीओएस (POS) मशीन पर अपना अंगूठा लगाते हैं। यदि उनके उंगलियों के निशान वेरीफाई हो जाते है, तो वे पैसे निकाल सकते हैं। रिपोर्ट में लिखा है कि - “इस साल जुलाई में, नवादा पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार करने के लिए एक विशेष जांच दल का गठन किया और प्लास्टिक जैसे पदार्थों से बने 512 क्लोन अंगूठे के निशान बरामद किए।” विस्तृत कहानी देखें जिसमें पुलिस अधिकारियों के साक्षात्कार शामिल हैं जो बताते हैं कि वे कैसे मानते हैं कि धोखाधड़ी हुई है।

महीने की शुरुआत में, द हिंदू ने रिपोर्ट किया था कि गुजरात में दो लोगों को कथित तौर पर आधार और पैन कार्ड जैसे दो लाख पहचान प्रमाण दस्तावेज़ों को जाली बनाने और प्रत्येक को ₹15 से ₹200 में बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023

आप सभी आधार पर नजर रखने वालों के लिए डेटा संरक्षण अधिनियम का क्या मतलब है? आधार परियोजना किसी कानून के अभाव में 2009 में शुरू हुई। लगभग दस साल बाद, आधार मामले में बहस के दौरान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से वादा किया था कि वह डेटा सुरक्षा कानून पारित करेगी। अंततः, भारत में अब तक एक सबसे बड़े डेटा उल्लंघनों से के कुछ ही सप्ताह बाद, केंद्र सरकार ने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2023 पारित किया। जो बाद मैं राष्ट्रपति की अनुमति के बाद 11 अगस्त को अधिनियम बना

यह कानून हमें पर्याप्त डेटा सुरक्षा प्रदान करने में विफल है, यह सरकार के लिए छूट भी बनाता है। इसका मतलब यह है कि व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम आधार परियोजना पर भी लागू नहीं होगा (धारा 17 देखें)। यह उस प्रश्न का उत्तर देता है जो हममें से कुछ लोगों ने कुछ साल पहले उठाया था - क्या आधार परियोजना डेटा संरक्षण अधिनियम के साथ मौजूद हो सकती है? इसका उत्तर हाँ है, क्योंकि डेटा संरक्षण अधिनियम इस पर लागू नहीं होता है।

आधार डेटा साझा करने के बारे में आधार अधिनियम क्या कहता है?

आधार अधिनियम 2016 की धारा 29 में कहा गया है कि मूल बायोमेट्रिक जानकारी कभी भी किसी के साथ साझा नहीं की जा सकती है और इसका उपयोग केवल आधार संख्या उत्पन्न करने और प्रमाणीकरण के लिए किया जा सकता है। धारा 29 (2) कहता है कि “ इस अिधिनयम के अधीन संगृहीत या सृजित  कोर बायोमैक सूचना से भिन्न  पहचान सम्बन्धी  सूचना, केवल इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार और ऐसी रीति से, जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, साझा की जा सकेगी।” इसका मतलब है कि कोर बोमेट्रिक इनफार्मेशन सिर्फ आधार अधिनियम के तहत इकठ्ठा की गयी है वह सिर्फ इसी अधिनयम और विनियमों के अनुसार ही साझा की सकेगी.

धारा 29 (3 ) कहता है कि “ पहचान संबंधी जानकारी जो की अनुरोध करने वाली इकाई या ऑफ़लाइन सत्यापन चाहने वाली इकाई के पास उपलब्ध होगी-

(क) का उपयोग, प्रमाणीकरण या ऑफ़लाइन सत्यापन के लिए कोई भी जानकारी जमा करते समय व्यक्ति को लिखित रूप में सूचित किए गए उद्देश्यों के अलावा, किसी भी उद्देश्य के लिए उपयोग नहीं किया जाएगा ; या

(ख) का खुलासा, प्रमाणीकरण या ऑफ़लाइन सत्यापन के लिए कोई भी जानकारी जमा करते समय व्यक्ति को लिखित रूप में सूचित किए गए उद्देश्यों के अलावा, किसी भी उद्देश्य के लिए नहीं किया जाएगा। 

   बशर्ते यह कि खंड (ए) और (बी) के तहत उद्देश्य व्यक्ति को समझने योग्य स्पष्ट और सटीक भाषा में होंगे।

डेटा सरंक्षण अधिनियम 2023 के अंतर्गत छूट आधार अधिनियम की अवहेलना नहीं करती है. ऐसा प्रतीत होता है कि आधार अधिनियम की धारा 29 के तहत नोटिस की आवश्यकता अभी भी अधिनियम के तहत एकत्र और उपयोग की जाने वाली "मुख्य बायोमेट्रिक जानकारी" के अलावा किसी भी पहचान जानकारी पर लागू होनी चाहिए। साथ ही आधार (सूचना की सहभाजित) विनियम, 2016. क्या कभी किसी को अपनी पहचान संबंधी जानकारी साझा करने के बारे में प्राधिकरण या अनुरोधकर्ता इकाई से कोई नोटिस मिला है? यदि हाँ तो हमें बताएं!

निजता का उल्लंघन और पुलिस आपको कैसे ट्रैक कर सकती है

दो दिलचस्प मामले जी की आधार और पुलिस की लोगों को ट्रैक करने की क्षमता पर सवाल उठाते हैं। दोनों मामले लापता ऐसे व्यक्तियों से संबंधित हैं जो खोजे नहीं जाना चाहते थे। दिनाँक 01.09.2023 को, टाइम्स ऑफ इंडिया ने रिपोर्ट किया कि, “धोबे गांव के किसान भोला यादव अपने बेटे को जाने नहीं देना चाहता, जिसके साथ वह सात साल बाद गुरुवार को फिर से मिला था। हालाँकि, बेटे ने कहा कि वह कभी घर लौटना ही नहीं चाहता था। बेटा 15 साल की उम्र में लापता हो गया और पुलिस ने उसके आधार नंबर को ट्रैक करके उसे ढूंढ लिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि “जांच के दौरान पुलिस टीम को लापता युवक के आधार नंबर से जुड़ा एक बैंक खाता मिला। फिर उन्होंने खाते से जुड़े उसके सेल फोन को ट्रैक किया और उसे ढूंढने में कामयाब रहे.”

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक अन्य रिपोर्ट जो कि दिनाँक 14.09.2023 को प्रकाशित हुई थी उसमें कहा गया है कि 2018 में एक महिला लापता हो गई और उसका गायब होना उसके पति के साथ विवाद से जुड़ा था। वर्षों की खोज के बाद, जांचकर्ताओं को पता चला कि उसने अपना आधार कार्ड अपडेट कर लिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि "चेहरे की पहचान और डिजिटल जांच तकनीकों का उपयोग करके, पुलिस ने सफलतापूर्वक उसे गोवा तक ट्रैक किया जहां वह पाई गई जहाँ वह एक नया जीवन जी रही थी।"

पुलिस ने इन लोगों को इनका आधार नंबर का प्रयोग करके कैसे खोजा? क्या पुलिसकर्मी एक ही आधार नंबर का उपयोग करके कई लिंक किए गए डेटाबेस तक पहुंचने में सक्षम हैं? क्या डेटाबेस एकल आधार संख्या के लिए खोजे जाने योग्य हैं? लोगों की आधार से जुड़ी जानकारी तक पहुंचने के लिए पुलिस किस सॉफ्टवेयर और तकनीक का उपयोग कर रही है? क्या चेहरे की पहचान तकनीक को आधार से जोड़ा जा रहा है और निवासियों को ट्रैक करने के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है?

महात्मा गाँधी नरेगा और आधार 

लिबटेक इंडिया के मित्रों ने मनरेगा में आधार की शुरूआत और योजना से श्रमिकों के नाम हटाने से संबंधित एक महत्वपूर्ण अध्ययन प्रकाशित किया है। एक वर्ष से अधिक समय तक मनरेगा में विलोपन पर नज़र रखते हुए, उन्होंने अक्टूबर 2022 और जून 2023 के बीच 600 से अधिक श्रमिकों का साक्षात्कार किया, और दिसंबर 2022 और मई 2023 के बीच में मनरेगा से जुड़े  अधिकारियों का साक्षात्कार लिया। उन्होंने आंध्र प्रदेश (एपी), गुजरात, झारखंड, ओडिशा और तेलंगाना सहित विभिन्न राज्यों को कवर किया। वे इकनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली में लिखते हैं की, ““हमारा तर्क है कि आधार-आधारित हस्तक्षेपों की जटिलता और उनके कार्यान्वयन के तरीके का विलोपन की घटनाओं के साथ संबंध है। हम आधार हस्तक्षेपों को खोलकर और उनके औचित्य और जटिलता का आकलन करके शुरुआत करते हैं। हम आगे इस बात पैर भी चर्चा करते हैं कि आधिकारिक मनरेगा दस्तावेज़ विलोपन के बारे में क्या कहते हैं, और जमीनी स्तर पर विलोपन प्रथाओं और समाधान प्रक्रियाओं की संक्षेप में जांच करते हैं। अंत में, हम केंद्र सरकार की तकनीकी-समाधानवादी प्रवृत्तियों के एक लक्षण के रूप में आधार अनिवार्यता पर टिप्पणी करते हैं।”

रिमाइंडर! याद रखे आधार का वोटर पहचान पत्र से लिंक करना अनिवार्य नहीं है! इसको आगे तक पहुँचाइये!

जबकि आधार को लगभग हर चीज के लिए लगभग अनिवार्य बताया जा रहा है, इस बात को आगे तक शेयर करना न भूले कि - आपके आधार को अपने मतदाता पहचान पत्र के साथ जोड़ना अनिवार्य नहीं है, और इस बात को चुनाव आयोग ने भी सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट किया है।

हम किधर जा रहे हैं?

पांच साल पहले भारत के सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने कहा था कि आधार का उपयोग केवल कल्याण कार्यों के लिए किया जा सकता है। एक अलग फैसले में इसने आधार और पैन कार्ड को अनिवार्य रूप से जोड़ने की अनुमति दी थी। आर्टिकल 21 ट्रस्ट के मित्रों ने 2016 के बाद से यूआईडी परियोजना में विकास की एक संक्षिप्त सूची भी तैयार की है। आज, केंद्र सरकार आधार को हमारे दैनिक जीवन के हर क्षेत्र और पहलू में शामिल करने की कोशिश कर रही है, और इसने एक डेटा सरंक्षण कानून भी बनाया जो कि सरकार और इसके द्वारा चुने गए किसी भी व्यक्ति को देटा सरंक्षण अधिनियम 2023 के अनुपालन से छूट देता है।

प्रौद्योगिकी को लेकर चर्चा खोखली बनी हुई है। एक तरफ जहाँ हम से अपेक्षा की जाती है कि हम आधार योजना को राष्ट्रीय गौरव के प्रतीत के रूप में स्वीकृत करें तो वहीँ दूसरी ओर आधार को भूख से होने वाली मौतों और धोखा धरी से भी जोड़ कर देखा जा रहा है. 

यह खोखला राष्ट्रवाद इंडिया स्टैक प्रोजेक्ट में उत्पन्न हुआ है, जिसकी बुनियाद और शुरुआत आधार है। इंटरनेट गवर्नेंस प्रोजेक्ट ने इंडिया स्टैक पर जो एक निजी कंपनी है जो सार्वजनिक रूप से रखे गए संसाधनों का उपयोग करती है,  एक गहन रिपोर्ट प्रकाशित की है. एक नए "डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे" के रूप में आधार की पुनः ब्रांडिंग विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि यह बेहद भ्रामक है, जो इस परियोजना के तहत जबरदस्ती और बहिष्करण के इतिहास को अस्पष्ट करता है। यह सार्वजनिक बुनियादी ढांचा किसके लिए है? कैसे लाखों भारतियों का डेटा का उपयोग किया जाएगा? आधार फैसले के पांच साल बाद, भविष्य गरिमा, निजता और स्वतंत्रता के लिए नई चुनौतियों से भरा दिख रहा है।

हम सभी को शुभकामनाएँ जो अभी भी विरोध कर रहे हैं, लिख रहे हैं, सोच रहे हैं! हम उम्मीद करते हैं कि इस सप्ताह तत्काल अपडेटस के लिए एक व्हाट्सएप चैनल लॉन्च करेंगे जिसके बारे आप सभी को सूचित किया जाएगा।

जैसा कि हम आधार फैसले के बाद के पांच वर्षों पर विचार करते हैं और भविष्य की ओर देखते हैं, हम खुद को याद दिलाते हैं कि हमारी आलोचनाएं और हमारा प्रतिरोध मजबूत बना हुआ है। और साथ ही प्रौद्योगिकी, सत्ता के केंद्रीकरण, राज्य और हमारी अपनी स्वतंत्रता के बारे में दस्तावेजीकरण और चिंतन का कार्य जारी है।

एकजुटता में,